Thursday, November 6, 2008

सरकार! तुम्हारे हाथों में


केवल उधार है खातों में, कब अन्न पड़ा इन आंतों में,
था एक वोट जो सौंप दिया, सरकार! तुम्हारे हाथों में |

साबुन, तेल, लिपस्टिक लो, खाने की चीजें पौष्टिक लो,
अपनी सारी तनख्वाह और घरबार तुम्हारे हाथों में |

चाहे जितना लूटो-नोंचो, जब प्राफिट है तो क्यों सोचो
सब चीजों का उत्पादन और व्यापर तुम्हारे हाथों में |

चाहो तो पत्ता साफ़ करो या फिर हमको माफ़ करो
अब अपनी तो गर्दन और तलवार तुम्हारे हाथों में |

चाहे दो डुबो इशारे पर अथवा ले चलो किनारे पर
अब जनता की तो नैया और पतवार तुम्हारे हाथों में |

चाहे छोटा, खुशहाल करो अथवा वीभत्स, विशाल करो
एकाध करो या दस-बारह, परिवार तुम्हारे हाथों में |


५-१०-१९७३

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